धर्म का आचरण क्यों और किनके लिए ?

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Mahender Pal Arya

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धर्म का आचरण क्यों और किनके लिए ?

अब तक आप लोगों ने यह देखा की धर्म और धर्मग्रन्थ क्या और किसे कहा जाता है किसे मानना चाहिए का एक विवेचन | धर्म पर आचरण करने का उपदेश जिसमें हो उसे ही धर्मग्रन्थ कहा जाता है | और धर्म ईश्वरप्रदत्त मानव मात्र के लिए होने हेतु धर्मग्रन्थ भी ईश्वरीय ज्ञान सिद्ध होता है | अब तक मैंआप लोगों को इन दो बातों का प्रमाण सिद्ध करने का प्रयास किया है, जिसे धर्म, और धर्मग्रन्थ कहा गया अथवा कहा जाता है |

आज इस धर्म का आचरण क्या है, क्यों हैऔर, किनके लिए है ? इस पर चर्चा करेंगे, क्यों की धर्म का एक मात्र उद्देश्य मानव मात्र का धर्माचरण पक्ष | जिस को हम देख सकते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी से, और उनका विरोधी रावण से | और महा भारत काल के कौरव और पाण्डव से |



मर्यादा पुरुषोत्तम धर्म पर आचरण करने वालों में अग्रणी रहे, जिस कारण आज भी मानव जीवन में उनका उदाहरण दिया जाता है | की माता, पिता के आज्ञा कारी सन्तान देखना हो तो श्री राम को देखो, भाई भाई का प्यार देखना हो तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, और भरत, लक्ष्मण, आदि को देखो | पति पत्नी का स्नेह और मर्यादा को देखना हो तो श्रीराम और सीता को देखो, भाभी और देवर को देखना हो तो, सीता और लक्ष्मण को देखो | यह सभी आचरण पक्ष है, जैसा लक्ष्मण जब घात हुए, दर्द से परेशान थे हनुमान ने पूछा लक्ष्मण जी दर्द कहाँ है ? जवाब मिला की जखम के स्थान तो मैं दिखा सकता हूँ, जखम {घाव } कहाँ कहाँ है, आप दर्द जानना चाहते हैं वह तो राम जी ही बता सकते हैं दर्द को, यही धर्माचरण का पक्ष है |

और भी उदाहरण है, जब सीताजी के कान के कुण्डल को लक्ष्मण जी के सामने रखकर पहचानने के लिए कहा गया, तो लक्ष्मण जी ने जवाब दिया, की मैं कान के कुण्डल को नहीं पहचानता मैंने तो उनके मुह कीओर नज़र उठाकर कभी देखा ही नहीं | मैं उनके पैर के गहना को ज़रूर पहचान लूँगा, कारण मैं रोजाना सुबह उठकर उनके पैर को छूता था,इसे कहते हैं धर्माचरण पक्ष |



इस प्रकार की अनेक घटनाएँ है जिसे हम अपने महापुरुषों के जीवन से देख सकते है | इसी बात को रावण के जीवन में देखें तो पता लगता है, रावण को चारों वेद, और छ: शास्त्र जुबानी याद था, जिस कारण रावण को दशानन्द कहा गया | पर रावण वेदोपदेश को अपने जीवन में उतारा ही नहीं | और वेदका उपदेश है जिसके आचरण ठीक न हो वेद भी उसे ठीक नहीं कर सकता,यह सभी आचरण पक्ष है |

इसी धर्माचरण, पक्ष को योगेश्वर श्रीकृष्ण जी के जीवन से भी हम देख सकते हैं, ऋषि संदीपन जी के पास गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली में पलते पढ़ते रहे, श्रीकृष्ण जी, और एक गरीब ब्राम्हण परिवार का विद्यार्थी सुदामा | दोनों ही गुरु जी से विद्या अध्यान करते थे दोनों की मित्रता भी इतिहास का एक उदहारण बना | दोनों की मित्रता जगजाहिर है, एक बार की बात है, जब सुदामा जी गरीबी की दशा में अपने मित्र श्रीकृष्ण जी के दरबार में पहुँचे, कृष्ण जी उनकी दशा को देख कर उनकी गरीबी और दुर्दशा को समझ गये |

सुदामा जी को अपने पास ही रख लिया, इधर सुदामा जी को पता भी लगने नहीं दिया की उनकी घर की दशा को ठीक कर दिया, अर्थात मकान बनवा दिया काफी धनवान बना दिए, अब सुदामा जी जब अपने घर जाने की बात की श्रीकृष्ण जी उनको रोकते रहे | अर्थात इधर सुदामा जी के धर बनाने में जितना समय लगा उतनेही दिन उनको रोके रहे अपने पास, जब इधर मकान बनकर तैयार हो गया, श्रीकृष्ण जी ने अपने मित्र पण्डित सुदामा जी को विदा किया |

अब सुदामा जी अपने घर लौटे, तो उन्हों ने अपना घर भी नहीं पहचाने, काफी देर के बाद सब बात समझमें आई उनकी, इसे ही कहा जाता है धर्माचरण पक्ष | एक लम्बी कहानी ही नहीं हमारा इतिहास है हमारे महापुरुषों की | इस प्रकार के इतिहास के पन्नों से हम अनेकों प्रमाण दे सकते हैं या देख सकते हैं |

यही कारण है की मात्र सृष्टि नियमों को जान लेने मात्र से भी बात बनने वाली नहीं है जब तक की वह इन नियमों केअनुसार अपने जीवन में आचरण नहीं करता | जैसा उदाहरण राम, और रावण का देखा गया | कारण आचरण से ही जीवन में श्रेष्टता आती है, और मानव अपना आत्मिक उन्नति कर सकता है |

धर्म का आचरण क्यों और किनके लिए ?

अब तक आप लोगों ने यह देखा की धर्म और धर्मग्रन्थ क्या और किसे कहा जाता है किसे मानना चाहिए का एक विवेचन | धर्म पर आचरण करने का उपदेश जिसमें हो उसे ही धर्मग्रन्थ कहा जाता है | और धर्म ईश्वरप्रदत्त मानव मात्र के लिए होने हेतु धर्मग्रन्थ भी ईश्वरीय ज्ञान सिद्ध होता है | अब तक मैंआप लोगों को इन दो बातों का प्रमाण सिद्ध करने का प्रयास किया है, जिसे धर्म, और धर्मग्रन्थ कहा गया अथवा कहा जाता है |



आज इस धर्म का आचरण क्या है, क्यों हैऔर, किनके लिए है ? इस पर चर्चा करेंगे, क्यों की धर्म का एक मात्र उद्देश्य मानव मात्र का धर्माचरण पक्ष | जिस को हम देख सकते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी से, और उनका विरोधी रावण से | और महा भारत काल के कौरव और पाण्डव से | मर्यादा पुरुषोत्तम धर्म पर आचरण करने वालों में अग्रणी रहे, जिस कारण आज भी मानव जीवन में उनका उदाहरण दिया जाता है | की माता, पिता के आज्ञा कारी सन्तान देखना हो तो श्री राम को देखो, भाई भाई का प्यार देखना हो तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, और भरत, लक्ष्मण, आदि को देखो | पति पत्नी का स्नेह और मर्यादा को देखना हो तो श्रीराम और सीता को देखो, भाभी और देवर को देखना हो तो, सीता और लक्ष्मण को देखो | यह सभी आचरण पक्ष है, जैसा लक्ष्मण जब घात हुए, दर्द से परेशान थे हनुमान ने पूछा लक्ष्मण जी दर्द कहाँ है ? जवाब मिला की जखम के स्थान तो मैं दिखा सकता हूँ, जखम {घाव } कहाँ कहाँ है, आप दर्द जानना चाहते हैं वह तो राम जी ही बता सकते हैं दर्द को, यही धर्माचरण का पक्ष है |



और भी उदाहरण है, जब सीताजी के कान के कुण्डल को लक्ष्मण जी के सामने रखकर पहचानने के लिए कहा गया, तो लक्ष्मण जी ने जवाब दिया, की मैं कान के कुण्डल को नहीं पहचानता मैंने तो उनके मुह की ओर नज़र उठाकर कभी देखा ही नहीं | मैं उनके पैर के गहना को ज़रूर पहचान लूँगा, कारण मैं रोजाना सुबह उठकर उनके पैर को छूता था,इसे कहते हैं धर्माचरण पक्ष | इस प्रकार की अनेक घटनाएँ है जिसे हम अपने महापुरुषों के जीवन से देख सकते है | इसी बात को रावण के जीवन में देखें तो पता लगता है, रावण को चारों वेद, और छ: शास्त्र जुबानी याद था, जिस कारण रावण को दशानन्द कहा गया | पर रावण वेदोपदेश को अपने जीवन में उतारा ही नहीं | और वेदका उपदेश है जिसके आचरण ठीक न हो वेद भी उसे ठीक नहीं कर सकता,यह सभी आचरण पक्ष है |



इसी धर्माचरण, पक्ष को योगेश्वर श्रीकृष्ण जी के जीवन से भी हम देख सकते हैं, ऋषि संदीपन जी के पास गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली में पलते पढ़ते रहे, श्रीकृष्ण जी, और एक गरीब ब्राम्हण परिवार का विद्यार्थी सुदामा | दोनों ही गुरु जी से विद्या अद्धायण करते थे दोनों की मित्रता भी इतिहास का एक उदहारण बना | दोनों की मित्रता जगजाहिर है, एक बार की बात है, जब सुदामा जी गरीबी की दशा में अपने मित्र श्रीकृष्ण जी के दरबार में पहुँचे, कृष्ण जी उनकी दशा को देख कर उनकी गरीबी और दुर्दशा को समझ गये |



सुदामा जी को अपने पास ही रख लिया, इधर सुदामा जी को पता भी लगने नहीं दिया की उनकी घर की दशा को ठीक कट दिया, अर्थात मकान बनवा दिया काफी धनवान बना दिए, अब सुदामा जी जब अपने घर जाने की बात की श्रीकृष्ण जी उनको रोकते रहे | अर्थात इधर सुदामा जी के धर बनाने में जितना समय लगा उतनेही दिन उनको रोके रहे अपने पास, जब इधर मकान बनकर तैयार हो गया, श्रीकृष्ण जी ने अपने मित्र पण्डित सुदामा जी को विदा किया |

अब सुदामा जी अपने घर लौटे, तो उन्हों ने अपना घर भी नहीं पहचाने, काफी देर के बाद सब बात समझमें आई उनकी, इसे ही कहा जाता है धर्माचरण पक्ष | एक लम्बी कहानी ही नहीं हमारा इतिहास है हमारे महापुरुषों की | इस प्रकार के इतिहास के पन्नों से हम अनेकों प्रमाण दे सकते हैं या देख सकते हैं |

यही कारण है की मात्र सृष्टि नियमों को जान लेने मात्र से भी बात बनने वाली नहीं है जब तक की वह इन नियमों के अनुसार अपने जीवन में आचरण नहीं करता कोई | जैसा उदाहरण राम, और रावण का देखा गया | कारण आचरण से ही जीवन में श्रेष्टता आती है, और मानव अपना आत्मिक उन्नति कर सकता है |

आध्यात्मिक अथवा आत्मिक उन्नति के लिए मानव जीवन में धर्माचरण ही एक मात्र मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए जिससे मनुष्य की चेतना शक्ति का विकास होता हुवा अपने मन्जिल या परमधाम तक पहुँचना सम्भव होगा, यह मात्र किसी सामाजिक व्यवस्था को बनांये रखने के लिए नहीं, किन्तु मानव मात्र के चेतना का ही विकास है |

सही पूछिए तो यह नियम मात्र सांसारिक भोग विलास के लिए नहीं, की मानव इसका पालन करने पर सम्पन्न बन जाये | अथवा उसकी सांसारिक प्रशंसा होने लगे, या कोई बड़ा आदमी बन जाए या उसकी पूजा होने लगे आदि | आप लोगों ने देखा भी है पहले भी और आज भी धर्म के नाम से अपना वैभव बना लिया एक साम्राज्य खड़ा कर लिया, धन बटोरकर लोगोंको दिक्भ्रमित करते रहे अगाध सम्पत्ति के मालिक बनगए | यह सारा धर्म के नाम से हुवा अपने को धार्मिक बता कर दुनिया वालो को ठगते रहे, आज वही गुरु कहलाने वाले लोग जेल में बन्द है कोई कहीं एकेला है, तो कोई कहीं बाप बेटे भी जेल में है |

सभी बातों को सामने रख कर विचार करें की यह लोग धर्म और अपने को धार्मिक बता कर ही लोगों को जोड़ते रहे | किन्तु धर्म का जो आचरण पक्ष है वह ना जान पाए क्या है, और ना ही उस पर आचरण कर पाए, धर्म के उस आचरण पक्ष को ? इस प्रकार जब हम सत्यता को और आचरण को अपने जीवन में नहीं उतारते हैं तो हमारा यह सारा काम बनावटी और दिखावा ही साबित होता है | हमें धर्म पर आचरण भी करना होगा यह सब के लिए हैं किसो व्यक्ति के लिए नहीं, कोई वर्ग के लिए नहीं, कोई समप्रदाय के लिए भी नहीं, यही है वह मानव धर्म जिस पर मानव मात्र को आचरण करना चाहिए |

महेन्द्र पाल आर्य = 2 / फरवरी /21 = को लिखा था |

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