वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः

SanskAI

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बताइए कौन ?

वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः
त्रिणेत्रधारी न च शूलपाणिः ।
त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगी
जलं च बिभ्रत् न घटो न मेघः ॥


पहले बिना अर्थ देखे संस्कृत का भावार्थ समझने का प्रयास करें।

सरलार्थ :-

कौन है जो वृक्ष पर रहता है लेकिन पक्षीराज गरुड़ नही! कौन है जो तीन आँखों वाला है लेकिन शिव नहीं! कौन है जो वक्कल वस्त्र धारण किये हुए है लेकिन योगी नहीं! कौन है जो जल को अपने अंदर ग्रहण किये हुए है परंतु बादल या घड़ा नही है ?
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नारियल
 
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(ग) वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः, तिनेत्रधारीन च शूलपाणिः । त्वग्वस्तधारी न च सिद्धयोगी, जलं च विभ्रन्न घंटो न मेघः ॥3॥
 
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