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गीता परिवार के विचारों के प्रचार और कार्य के विस्तार में संस्था द्वारा प्रकाशित साहित्य का बड़ा योगदान है | कहते हैं कि “जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि’. गीता परिवार के कार्यकर्ता अपने क्षेत्रों में, आसपास के गाँवों में प्रत्यक्ष कार्य करते हैं किन्तु इतने बड़े देश में जहाँ कार्यकर्ता प्रत्यक्ष नहीं पहुँच पाते वहाँ भी संस्कारों की धारा को पहुँचाने का कार्य सम्भव हुआ गीता परिवार द्वारा प्रकाशित साहित्य के माध्यम से. प्रारंभ में संस्कार शिविरों के लिए गीत, संस्कृत श्लोक इत्यादि के संकलन वाली एक पाठमाला का प्रकाशन सबसे पहले हुआ था | संस्कार शिविरों के सञ्चालन में ये पाठमाला अत्यंत सहायक हुआ करती थी | कार्य के विस्तार के साथ नए-नए प्रयोग भी होने लगे | हर एक संस्कार शिविर अनेक नए अनुभव लेकर आता था और हर एक प्रयोग भविष्य के लिए नयी राह तैयार करता था | दूसरी ओर स्थान-स्थान पर नए कार्यकर्ता नए संस्कार केंद्र भी खोल रहे थे | कार्य प्रभावी और सरल हो इसके लिए एक अभ्यासक्रम के निर्माण की आवश्यकता भी प्रतीत होने लगी | प्रयोगों और अनुभवों के आधार पर ही बाल संस्कार कार्य के लिए पाठक्रम तैयार हुआ |
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