vitalmind
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स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है,
जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैः द्विज उच्यते।विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रियलक्षणम्।।
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।
जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते।
वेदपाठाद् भवेद् विप्रः ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः।। ( स्कन्द पुराण)
जन्म से सभी शूद्रवत हैं , अर्थात् वेद के अनधिकारी हैं किन्तु संस्कार होने से द्विज वेद का अधिकारी होता है ।
जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद्द्विज उच्यते ॥
(स्कन्दपुराण)
यहाँ जन्म से शूद्र इसीलिए कहा क्योंकि असंस्कृत व्यक्ति की शूद्रवत् संज्ञा है। जैसे शूद्र को वेदाध्ययन का अधिकार नहीं, वैसे ही अनुपवीती ब्राह्मण को भी नहीं।
वर्ण व्यवस्था रहस्यम्
साभार : श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु His Holiness Shri Bhagavatananda Guru *जानें हिन्दू धर्म में कैसे मिलती है जाति या वर्ण !!* वर्ण और जाति अलग अलग नहीं हैं। जैसे आपका शरीर सम…
venkateshbhrugublog.wordpress.com
Wikiwand - ब्राह्मण
ब्राह्मण हिंदू समाज में एक वर्ण है। वेदिक और वेदिक के बाद के समय में, ब्राह्मण पंडित दर्ज के माने जाते है, जो पंडित और गुरु के तरह काम करते है
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स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है,
जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैः द्विज उच्यते।विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रियलक्षणम्।।
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।
जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते।
वेदपाठाद् भवेद् विप्रः ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः।। ( स्कन्द पुराण)
जन्म से सभी शूद्रवत हैं , अर्थात् वेद के अनधिकारी हैं किन्तु संस्कार होने से द्विज वेद का अधिकारी होता है ।
जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद्द्विज उच्यते ॥
(स्कन्दपुराण)
यहाँ जन्म से शूद्र इसीलिए कहा क्योंकि असंस्कृत व्यक्ति की शूद्रवत् संज्ञा है। जैसे शूद्र को वेदाध्ययन का अधिकार नहीं, वैसे ही अनुपवीती ब्राह्मण को भी नहीं।