कुरान में विचित्र किस्सा पत्थर मुसा का कपडा ले भागा

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Mahender Pal Arya

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कुरान में विचित्र किस्सा पत्थर मुसा का कपडा ले भागा
नोट :-यह प्रमाण इबने कसीर हिंदी भाष्य पेज187 पारा 22सूरा 33 अह्जाब 69 का सन्दर्भ =यह आयात उतरी हजरत मुसा के लिए उनके एक दोष को लेकर लोग आपस में टोका टाकी करने लगे तो अल्लाह ताला औरों को यह काम करने के लिए मना फरमा रहे हैं की तुम लोग भी उन लोगों की तरह न करना | वह बात क्या थी देखें=
सही बुखारी शरीफ की हदीस में है की हज़रत मूसा बहुत ही शर्मीले और हयादार थे- इसी की चर्चा इस आयत में की जा रही है, इसमें बताया गया है की हजरत मूसा शर्म व हया के लिए किसी के सामने अपना बदन नंगा नहीं करते थे | बनी इसराईल आप को तकलीफ देने व सताने के लिए आपके पीछे पड गये थे | इसमें अल्लाह ताला का इरादा हुवा की आपसे बदगुमानी दूर करें |
एक दिन हजरत मूसा अपना सारा पकड़ा उतार कर एक पत्थर पर रख कर नंगा नाहा रहे थे –जब नहा कर अपना कपडा लेना चाहा तो उनका कपडा समेत पत्थर आगे सरक गया –वह अपना लाठी से उसे लेना चाहा, तो पत्थर दौड़ने लगा, आप उसके पीछे पीछे मेरे कपडे मेरे कपडे कह कर दौड़े | बनी इसराइल की एक जमात वहीं बैठी हुई थी –वह इस को देख रहे थे जब आप वहां पहुंचे तब अल्लाह के हुकुम से पत्थर रुक गया | बनी इसराइल इन सभी हरकतें देख कर उनका मजाक बना रहे थे, तो मूसा ने कुछ अप शब्द कहा अल्लाह ने उन्हें बरी कर दिया |
कुरान में इस प्रकार की किस्सा भरे पड़े हैं लेखक ने लिखते समय यह ध्यान नहीं रखा की पत्थर का दौड़ना लिखा यह कैसा उचित हो रहा है यह तो उन्हों ने सोचा भी नहीं | और यह नहीं जाना की दुनिया में पढ़े लिखे लोग भी है इस किस्से को सही और सच कैसे मान सकते हैं ? पहले तो लिखा मूसा बहुत शर्मीले थे हयादार थे – फिर नंगा नहाना हयादार के लिए उचित कैसा हुवा, बनी इसराइल ने तो मूसा का नंगा बदन देखा और मजाक बनाया –इधर पत्थर कपडा लेकर भागा और दौड़ा अल्लाह ने उसे रुकवाया, तो यह भी जरुर है की अल्लाह ने इन सभी दृश्य को देखा तभी तो पत्थर को रुकवाया |
यह है कुरानी किस्सा लेखक ने लिखते समय भी नहीं शरमाया यह घटना घटी थी या नहीं यह सत्य है कैसे मान लिया जायेगा ? पत्थर का दौड़ना और अल्लाह का उसे रुकवाना यह सच क्यों और कैसे है ? इससे आप लोग ज़रूर अंदाजा लगा रहे होंगे की कुरान में किस प्रकार की किस्से कहानी लिखी गई है ? इसे कलामुल्ला कह रहे हैं लोग, इस्लाम वाले इसे पत्थर की लकीर मानते हैं |
महेंद्र पाल आर्य = 2 सितम्बर 21

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