क्या जाती वही होती, जो जाते जाते भी नहीं जाती ?

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Mahender Pal Arya

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क्या जाती वही होती, जो जाते जाते भी नहीं जाती ?
आज मानव समाज को जाती के नाम पर किस प्रकार एक को दुसरे से दूर किया जा रहा है यह बहुत चिंता का विषय है | दुनिया बनाने वाले ने मानव मात्र का एक ही जाती बनाया है जिसे मानव जाती कहते हैं | मनु स्मृति में समानप्रसवत्मिका स: जाती बताया { अर्थात प्रसवकरने का तरीका जिनके एक हैं वह सब एक ही जाती कहलाती है } मानव मात्र का प्रसव होने का तरीका एक ही है जो मानव जाती कहलाती है | सभी मानव एक ही तरीके से मां के उदर से दुनिया में आते हैं कोई भी इन्सान दुसरे तरीके से धरती पर नहीं आया, और न आते हैं |
यही कारण बना मानव मात्र को सिर्फ और सिर्फ मानव जाती कहा गया बताया गया है | किन्तु आज मानव उन्नति के शिखर पर है सब जगह हमारी तरक्की हो रही है या हम तरक्की करते जा रहे हैं, कहीं भी कोई पीछे नहीं रहना चाहता एक दुसरे को तरक्की में पीछे छोड़ कर आगे बढ़ रहे है, या बढ़ना चाहते हैं | परन्तु यह बात समझमें नहीं आती की जाती के नाम से मानव समाज को पीछे किस लिए धकेला जा रहा है ?
जब की जातीवाद का विरोध 1900 के प्रथम में था आज भी उसे दोहरा रहे हैं लोग, जबकी 1800 के अंतिम में इसका विरोध राजा राममोहनराय ने किया था | इसी जाती पांति को लेकर जिस दलित वर्ग के लोग, मनुस्मृति का विरोध किया,या किया जाता रहा है | क्या उस दलित वर्ग में आपस में जाती पांति का भेद भाव टूटी है? क्या उनका आपसी छुआछूत पूरी तरह नष्ट हुआ ?
यही कारण था डॉ0 भीमराव आबेडकर ने अपने सत्य सनातन वैदिक धर्म को छोड़ कर बुद्ध मत को अपनाया | जब की अम्बेडकर को लिखने पढने से लेकर हर प्रकार की सहायता आर्य समाज के कार्यकर्ता व आर्य सिरोमणि नेता कहलाने वालों का रहा है | भारत से लेकर लंदन तक की पढाई में जिन्हें आर्य नरेश के नाम से पुकारा गया सयाजीराव गायकवाड़ जी ने1912 से1925 तक भीमराव आंबेडकर की उच्च विद्याविभूषित करने के लिए छात्र वृत्ति प्रदान की.व लन्दन भेजा | आर्यसमाज के नेता राजर्षि शाहू महाराज भी अपना आर्थिक सहायता करते रहे यहाँ तक की लन्दन जाकर अपना सहयोग दिया | और भी कई आर्य नेताओं ने इन्हें हर प्रकार से सहाता की है | तथापि उन्हों ने सत्य सनातन वैदिक धर्म को छोड़ कर बुद्ध के शरण में चले गये |
आज भी विवाह सम्वन्ध उनके आपस में नहीं होते, एक दलित दुसरे दलित को नीचा बता रहे हैं, दिखा रहे हैं आदि | अब हिन्दू में और बुद्ध में अंतर क्या है ? जो हिन्दुत्व को छोड़ कर अम्बेडकर ने बुद्धिष्ट को अपनाया ? बुद्ध मुर्ति के विरोधी थे आज बौद्ध ही महात्मा बुद्ध और आंबेडकर की प्रतिमा की पूजा कर रहे हैं | हिन्दुओं की तरह बौद्ध सम्प्रदाय से मुर्तियों की पूजा नहीं हट पाई | फर्क इतना ही है की, हिन्दू अनेक मूर्तियों को पूजते हैं, और बोधिष्ट बुद्ध, और आंबेडकर यह दोनों को पूजते हैं |
हिन्दू दीप जलाता है, बौद्ध मोमबत्ती जलाते हैं, हिन्दुओं को केसरीरंग पसन्द है भारतीय प्रतिक होने के कारण | बुधिष्टों को नीला, हिन्दू केसरिया टोपी पहनता है, तो बुधिष्ट नीला टोपी पहनता है | हो सकता है बाह्य क्रियाओं में परिवर्तन हुवा परन्तु, मूल प्रवित्ति आज भी ज्यों का त्यों है | रंग बदले हैं पर अन्तर्मन नहीं बदला | आत्मा का काया कल्प नहीं हुवा | ऋषि दयानन्द और अम्बेडकर के अपने अपने प्रयत्नों के बावजूद जातीगत भेद आज भी यथावत विद्यमान है | क्या यह शब्द ठीक नहीं है की,जाती वही होती है जो जाते, जाते भी नहीं जाती ?
इन्हीं मानवता पूर्ण बातों को बताने वालो का नाम ब्राह्मण है कारण ब्रहम जानाति स ब्राहमण यही कारण बना ब्राहमण कहलाने वाले ही ब्रह्म को जानते हैं और जानने वाले ही ओरों को बता सकते हैं या फिर जाने वाले ही ओरों को जानकारी दे सकते हैं, यही कारण बना मानव समाज में सबसे बड़ी जिम्मेदारी परमात्मा ने खुद ब्राह्मणों को दिया है अर्थात मानव समाज का अगवाही या प्रतिनिधित्व करने वाले ही ब्राह्मण कहलाते हैं| यह दायित्व स्वयं परमामा का ही दिया हुआ है आज इस मानव समाज में जो लोग ब्राह्मणों को हेय दृष्टि से देखते हैं या उनका उपहास करते हैं मानों की ये उपहास उन ब्राह्मणों का नहीं अपितु परमात्मा का ही उपहास है कारण परमात्मा ने ब्राह्मणों को ही दायित्व देकर धरती पर भेजा है की मानव समाज को सत्य असत्य का ज्ञान कराए , मानव समाज को दिशा निदेश करने वालो का नाम ही ब्राह्मण पड़ा है |
जो सेना में कमांडर होते हैं वही सेना का दिशा निर्देश करते हैं ठीक इसी प्रकार मानव समाज का कमांडर भी ब्राह्मण कहलाते हैं | क्षत्रिय ,वैश्य ब्राह्मणों के दिशा निर्देशानुसार चलते हैं ताकि यह तीनों वर्ण भी अपना कमांडर मानते हैं ब्राह्मणों को जिसकी नियुक्ति स्वयं परमात्मा द्वारा की गई है |
कारण समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक कमांडर की आवश्यकता होती है, जो इन सच्चाई को जाने, समझे, परखे, और समाज को दिशा निर्देश करे वही ब्राहमण कहलाते हैं |
दुर्भाग्य से आज अनभिज्ञ लोग उन्हीं ब्राह्मणों को तिलक तराजू कहकर अपमानित करने का दुस्साहस करते दिखाई दे रहे हैं जो उनकी बहुत बड़ी भूल है, ये सूरज पर थूकने वाली बात हो रही है किन्तु उन मूर्खों को यह पता ही नहीं की ऊपर थूकने से थूक अपने ऊपर ही गिरेंगे, इससे इनकी बुद्धिमत्ता का पता चलता है की सच्चाई को तिलांजलि देकर अपना मतलब सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं जो कभी भी होना संभव नहीं | क्योंकि यह व्यवस्था परमपिता परमात्मा की बनाई हुई है, परमात्मा की व्यवस्था पर किसी का हस्तक्षेप करना या होना संभव है क्या ?
अभी भी समय है मानव कहलाने के लिए सत्य का धारण और असत्य का परित्याग करना चाहिए तभी हम मानव कहलाने के अधिकारी बनेंगे |

महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता= 30 /3 /18-इस तारीख को ही लिखा था कई बार याद कराया गया | आज 27 जुलाई 21 को भी याद दिला रहे हैं |

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