संदीप कुमार का सवाल मेरा जवाब |

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Mahender Pal Arya

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Sandeep Kumar Singh पंडित जी परमात्मा=परम+आत्मा, नाम से ही जाहिर है कि परम मतलब सर्वश्रेष्ठ एक ही हो सकता है दूसरा नहीं परन्तु वो सर्वश्रेष्ठ ही सनातन धर्म के अनुसार धरती पर पाप को समाप्त करने के लिए समय-समय पर अनेक रूपों में जन्म लेता है। निरंकार को भी भौतिक दुनिया में कुछ करने के लिए भौतिक रूप में आना पड़ता है तो ये तो आप पर निर्भर है कि उस परम पिता परमेश्वर के निरंकार रूप की उपासना करें या साकार रूप की इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

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Pandit Mahender Pal Arya भाई संदीप कुमार जी – एक बात सोचें -की जब आप के घरमे कोई बिल्ली दूध पी रही हो जो बाहर की है – तो उस बिल्ली को भगाने के लिए, आप किसी बड़े आदमी को बुलाएँगे, अथवा खुद उठ कर उस बिल्ली को भगायेंगे ?

यहाँ भी तो यही बात है की जो श्रेष्ट ही नही अपितु सर्व श्रेष्ट है उस से हम दुनिया के मानव कृत काम लें, यह अकलमन्दी है अथवा मुर्खता ? यही तो मै कह रहा हूँ की यह बात मुर्खता पूर्ण है, यह बात उनकी है जो ईश्वर के बारेमे जिनलोगों की कुछ भी धारणा ही नही है -जो ईश्वर को जानते तक नही |



क्या आप मख्खी मारने के लिए तोप का इस्तेमाल करते हैं ? यह सारा काम मानव कृत है, ईश्वर कृत है ही नही ? तो इस काममे ईश्वर को जोड़ देने का मतलब ही है वह ईश्वर को जानता ही नही ? उसके अधीन क्या काम है, उसे बिना जाने जहाँ तहां उसे जोड़ देना यह कौन सी अकल मंदी है ? जबके हमारा और परमात्मा का काम अलग अलग है |



गेहूं आपने बोया -किन्तु उस पौधे में आप गेहूं लगा नही सकते ? आप के बोने के बाद काम परमात्मा का शुरू हुवा | जब गेहूं पक कर तैयार होगया, उसे काट कर घर लाने का काम आप का होगा, परमात्मा का नही ? मात्र इतना ही नही गेहूं थोड़ी कच्ची हो आप उसे काट कर घर लायें वह ख़राब तो हो जायेगा, किन्तु आप उसे पका नही सकते ?



तो यहाँ परमात्मा को आप ने जानने का प्रयास किया की नही ? अब उसे जाने बिना ही उसकी उपासना कैसे करना चाहते हैं आप ? वह है ही निराकार -उसे साकार किस लिए मानते हैं ? आपके साकार मानने से क्या वह निराकार का साकार होना संभव है ? इसको जानना जरुरी है अथवा नही ?



यही बात मै अगर आप के लिए कहूँ की सन्दीप जी पुरुष तो है -पर वह महिला भी है ? यह बात मानने लायेक है या नही ? तो सृष्टि नियमानुसार जो चीज का जैसा नाम पड़ा उस का नाम प्रलय तक वही रहना है | किसी के कहने पर उसका नाम और गुण नहीं बदल सकते | यह है परमात्मा की व्यवस्था, प्रकृति का नियम इसे हम मानव कैसे बदल सकते हैं भला ? जब परमात्मा -रूप -रस – गन्ध -शब्द -स्पर्श -से अलग है तो उसे किस रूपों में बंधना चाहते हैं ?और किस लिए बांधना चाहते हैं ?



जब वह निराकार ही है तो उसे साकार किसलिए बनाना और मानना चाहते है, अपना मनमानी ? क्या उसके साकार मानने से आप उसे देख सकते हैं? जब के वह आंख का विषय ही नही है, तो किसको देखेंगे ? एक छोटी सी बात -की आप के अन्दर जो आत्मा है उसे कभी आपने अपनी आँखों से देखा है ?

अगर नही तो ईश्वर को साकार तो इस लिए मानना चाहते हैं आप, उसे देखने के लिए ? जब के वह आंख का विषय ही नही है ? यही तो जानने का विषय है जो आप लोग जानने के बजाय उसी का मजाक बनारहे है ? 9 /2 /21

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